देशभर में तापमान बढ़ता जा रहा हैं. गर्मी से लोगों का हाल-बेहाल हैं. हाल ही दिनों की बात करे तो राजस्थान का चूरू शहर देश के सबसे गर्म शहरों में शिखर पर हैं. देश के 145 शहरों का तापमान 50 डिग्री के पार पहुंच गया. गर्मी लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं. गर्मी के साथ दूसरी समस्या पेयजल की किल्लत भी हैं. बात करे महाराष्ट्र के मराठावाड़ा की तो कई बांध सूख चूके हैं. लोगों को नहाना-धोना तो दूर, पीने तक का पानी भी नसीब नहीं हो रहा हैं.
अब सबसे बड़ा सवाल, आखिर इन समस्याओं का समाधान कैसा मिलेगा ? क्यों हर साल कई लोगों को
पानी की किल्लत और गर्मी से जान से गवानी पड़ती हैं. आखिर इनका पुख्ता समाधान कब
और कैसे निकलेगा ?
खैर, सवाल पूछना आसान हैं. लेकिन समाधान ढूंढना आसान कार्य नहीं होता हैं. आपके मन में अभी सवाल होगा कि आखिर समाधान कैसे
निकलेगा. देखो ! किसी भी समस्या के कारण को हटा देने से समाधान
अपने आप निकल जाता हैं. तो बस पहले यह जान लिजिए कि गर्मी आखिर क्यों बढ़ रही हैं.
क्यों बढ़ रही है यह गर्मी
ऐसा नहीं हैं कि सिर्फ भारत में तापामान वृद्धी देखने को मिल रही हैं. कई
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हर साल धरती का तापमान बढ़ता जा रहा हैं. इसकी सबसे
बड़ी वजह है ग्लोबल वार्मिग यानी भूमंडलीय उष्मीकरण. आइए जानते हैं क्या होता हैं
भूमंडलीय उष्मीकरण.
हम सभी जानते हैं कि धरती पर सूर्य की रोशनी ही अंधकार मिटाती हैं. जब सूर्य
की रोशनी धरती पर पहुंचती हैं तो इसके साथ कई हानिकारक किरणें भी होती हैं. जो धरती
से टकराकर वापस अंतरिक्ष में चली जाती हैं. जिससे धरती पर रहने वाले लोग इन किरणों
के हानिकारक प्रभावों से बच जाते हैं. लेकिन औद्योगिकीकरण और अन्य मानवीय गतिविधियों
से कुछ ऐसी गैंसे धरती पर निकलती हैं, जो उपर जाकर वायुमंडल में एक आवरण (एक तरह
से वायु की परत) बना लेती हैं.
सूर्य की रोशनी के साथ आने वाली हानिकारक किरणें,
जिन्हे धरती से टक्कराकर वापस जाना होता हैं. उन किरणों को आवरण, वापस जाने नहीं देता
हैं. जिस कारण सूर्य का तापमान बढ़ता हैं. यानी आवरण बनाने वाली गैंसे ही एक तरह
से गर्मी बढने की जिम्मेदार हैं. धरती का इस तरह से तापमान बढ़ने को ही ‘ग्लोबल वार्मिग’ (भूमंडलीय उष्मीकरण) कहते हैं.
अब जो भी गैसें धरती से आवरण बनाने वाली निकलती हैं, उनका जिम्मेदार मानव यानी
हम खुद हैं. यह गैसें आमतौर पर ए.सी., रेफ्रिजरेटर आदि से निकलती हैं. सोचो, जितनी
ज्यादा गर्मी पड़ेगी, मानव उतना ही गर्मी से बचने के लिए ए.सी. इत्य़ादि का
इस्तेमाल करेंगा. जिससे और ज्यादा गैंसे निकलेगी. तो और ज्यादा गर्मी बढ़ेगी. जो
कि देखने में भी मिल रहा हैं. सोचिए अब हम मानव कहां जा रहा हैं.
हर साल बढ़ रहा तापमान
हर साल तापामान में बढ़ोत्तरी देखने के मिल रही है. जो कि खतनाक हैं. अगर ऐसा
ही होता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि धरती गर्मी से आग बन जाएगी. जिस कारण जिना दुभर
हो जाएगा. यानी संक्षेप में कहे तो अब मानव (हम) नहीं जागे तो इसका परिणाम बहुत
महंगा भुगतना पड़ेगा.
तो फिर क्या करें हम
यह स्लोगन आप और हम बचपन से पढ़ते- सुनते आ रहे हैं कि “धरती माता करे पुकार, वृक्ष
लगाकर करो श्रृंगार”. बस इसी स्लोगन को केवल पढ़ने और रटा-रटाया बोलने से काम
नहीं चलेगा. इस स्लोगन को गंभीरता से लेना होगा. और जितना हो सके, ज्यादा से
ज्यादा पेड़ लगाना. पेड़ से ऑक्सीजन और ठंडक दोनो मिलती हैं. शायद आप कभी
चिलचिलाती धूप में कभी पेड़ के नीचे रूके हो तो महसूस किया होगा.
- - अणदाराम बिश्नोई
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