दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में भाग-दौड़ व रफ़्तार भरी जीवन शैली
में चिड़चिड़ापन होना अब स्वभाविक हैं. लेकिन इसके साथ खासकर युवाओं में बोल-चाल
की भाषा में परिवर्तन दिख रहा हैं. या यूं कहें आज की युवा पीढ़ी की आपस में
बोल-चाल की भाषा असभ्य हो गई हैं.
अगर आप मेरी तरह युवा हैं तो इस बात को आसानी से महसूस भी कर
रहे होगें. और हो सकता हैं कि आप भी अपने दोस्तों की असभ्य और भूहड़ शब्दों से
परेशान होगें. मजाक में मां-बहन से लेकर पता नहीं क्या-क्या आज की युवा पीढ़ी
दोस्तों के साथ आम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं. खैर यह अलग बात हैं कि यह सिर्फ
ज्यादातर दोस्तों के समूह में होता हैं.
लेकिन याद रखना, कहीं भी हो. आखिर भाषा की मर्यादा
तो लांघी जा रही हैं. यह एक तरह से भारतीय संस्कृति को ठेस पहुंचाना हैं. अगर इसे
सुधारने की पहल नहीं की गई तो आने वाले वक्त में यह एक बड़ी समस्या बन जाएगी.
गंदे लफ़्ज की जड़ कहां
यह सवाल आपके मन में भी होगा. आख्रिर हम इतने असभ्य क्यों होते जा रहें हैं. यह बात कह सकते हैं कि महानगरों में तनाव व निरस भरी जिंदगी में व्यक्ति परेशानी के चलते अपनी एक तरह की भड़ास और गुस्सा गालियां बक कर निकालता हैं. हांलाकि यह भी ठीक नहीं हैं. आखिर गुस्सें की जगह जहर उगलते और भाषा की मर्यादा को तार-तार करने वाले लफ़्ज क्यों ?
बात केवल युवाओं की नहीं हैं, अर्धयुवा, अधेड़ और बुजुर्ग भी गंदे लफ़्ज का इस्तेमाल करते नहीं चुकते. मौटे तौर
पर किशोरों और बच्चों में कम देखने में मिलता हैं. हांलाकि यह फ्रैंड-सर्कल पर भी
निर्भर करता हैं.
गंदी जबान पर लगाम हमें खुद ही लगानी होगी. एक शपथ लेनी
होगी कि कभी इस तरह की असभ्य भाषा का इस्तेमाल नहीं करेंगें. भाषाई फुहड़ता को खत्म करना की पहल करनी होगी.
आप भी गंदी भाषा को कम करने की पहल किजिए. आपको यह लेख कैसा
लगा. नीचे कॉमेंट बॉक्स में राय और सुझाव जरूर रखे.
- अणदाराम बिश्नोई
Nice comment I also want to become a journalist
जवाब देंहटाएंThanks
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