कश्मीर रियासत का विलय भारत मे,किसी अन्य राज्य की तरह सामान्य नहीं था। क्योकि इसका अन्दाजा आप वर्तमान में पाकिस्तान व भारत के बीच में कश्मीर की सीमा को लेकर हो रही नोक-झोंक से ही लगा सकते हैं।
देश की आजादी 15 अगस्त 1947 को मिलने के बाद देश का एकीकरण करना शीर्ष नेताओ के सामने एक बहुत बड़ी चुनौति थी। और कश्मीर का भारत में विलय करना सामरिक रूप से बहुत महत्वपुर्ण था। क्योकि कश्मीर की सीमा पाकिस्तान, अफगानिस्तान,चीन तथा तिब्बत के साथ लगती हैं।
एकीकरण की बात करने से पहले जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक दृष्टी पर नजर डाल लेते है,क्योकि एकीकरण( कश्मीर का भारत में विलय ) को अच्छे से समझने के लिए मुझे जरूरी लगा।
देश की आजादी 15 अगस्त 1947 को मिलने के बाद देश का एकीकरण करना शीर्ष नेताओ के सामने एक बहुत बड़ी चुनौति थी। और कश्मीर का भारत में विलय करना सामरिक रूप से बहुत महत्वपुर्ण था। क्योकि कश्मीर की सीमा पाकिस्तान, अफगानिस्तान,चीन तथा तिब्बत के साथ लगती हैं।
एकीकरण की बात करने से पहले जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक दृष्टी पर नजर डाल लेते है,क्योकि एकीकरण( कश्मीर का भारत में विलय ) को अच्छे से समझने के लिए मुझे जरूरी लगा।
भौतिक स्थिति
J&K ( यानी Jammu & Kashmir ) राज्य भौगोलिक विभिन्नता के कारण चार भागो में बांट सकते हैं-
1. जम्मू क्षेत्र : यह पुरा इलाका मैदानी हैं।
2. कश्मीर क्षेत्र : यह पहाड़ी व पथरीली घाटीयों का इलाका हैं।
3. लद्दाख क्षेत्र : यह ऊँची चोटियां वाला पहाड़ी इलाका हैं। मतलब इस इलाके में ऊँते पहाड़ो के अलावा कुछ नहीं हैं।
4. गिलगित व बालिस्तान क्षेत्र : यह इलाका लद्दाख के पश्चिम में स्थित हैं। यह भी पहाड़ी क्षेत्र ही हैं। परन्तु यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधन की दृष्टी से काफी महत्वपुर्ण हैं।
एकीकरण
: हमे इसे अच्छे से समझने के लिए आजादी के पूर्व में जाना होगा। कश्मीर रियासत को भारत में मिलाने का महत्वपुर्ण काम डोकरा राजपुतो नें किया था। क्योकि उस समय ऱियासत पर ईनका ही राज था।
सन् 1830 में लद्दाख को डोकरा राजपुत शासन ने जीत लिया। तथा इसके बाद 1840 में कश्मीर को जीत को अपनी रियासत जम्मू में मिला लिया। इस तरह से कश्मीर की पुरी रियासत पर डोकरा राजपुतो का शासन था।
सन् 1925 में हरिसिंह राजा का शासन था। उस समय मुस्लिमों ने राजपुतो से सत्ता हड़पने की कोशिश की और राजा के खिलाफ असन्तोष पैदा किया। परन्तु मुस्लिमो को सफलता हाथ नहीं लगी ।
उस समय शेख अब्दुल्ला मुस्लिमो के मुख्य नेता थे। बाद में जाकर मुस्लिम नेशनल कॉन्फ्रे़स की स्थापना 1932 में की। बाद मे इलका नाम बदल कर सिर्फ नेशनल कॉन्फ्रे़श कर दिया।
15 अगस्त 1947 तक यानी देश की आजादी तक कश्मीर रियासत के राजा हरिसिंह ने विलय को लेकर कोई फैसला नहीं किया।
देश की आजादी के बाद
15 अगस्त 1947 के आजाद होने के बाद ,कश्मीर रियासत को भारत में मिलना बहुत महत्वपुर्ण था,परन्तु पाकिस्तान ऐसा नहीं चाहता था। उसने राजा को बहुत प्रभोलन दिये। लेकिन राजा ने नहीं माना।
पाकिस्तान ऐसा इसलिए चाहता था,क्योकि चीन से कश्मीर की सीमा लगती है और जिससे वह चीन के साथ मैत्रीपुर्ण संबंध बनाकर ,भारत को तंग करना चाहता था।
पाकिस्तान को जब इसमे सफलता नहीं मिली को उसने सितम्बर 1947 को अपने सैनिको को घुसपैठीयों के वेश में कश्मीर बॉर्डर पर भेजकर घुसपैठ की। अक्टुम्बर 1947 तक आते-आते श्रीनगर तक घुसपैठ की।
इससे समस्या से समाधान के लिए नेशनल कॉन्फ्रे़श के नेता शेख अब्दुल्ला और कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहरचन्द महाजन ने मिलकर नई दिल्ली मे बैठक बुलाई । बैठक का निष्कर्ष यह निकला की ,भारत सरकार से अपील की जाये कि वह अपने सैनिक भेज पाकिस्तान घुसपैठीयो को खदड़े। बाद मे ऐसा ही हुआ। 26 अक्टुबर 1947 को भारतीय सैनिको ने पाकिस्तानियो को खदेड़ डाला। फिर हरिसिंह ने भारत सरकार के विलय पत्र पर इसी दिन हस्ताक्षर कर दिये।लिखा " एदत्द्वारा मै इस विलय पत्र" को स्वीकार करता हुँ।
इस तरह से कश्मीर रियासत का भारत में विलय हुँआ।
26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान की पहली अनुसूची की भाग "ख" में कश्मीर रियासत( कश्मीर,जम्मू,लद्दाख,बालिस्तान व गिलगित) को "जम्मू और कश्मीर" नामक राज्य के रूप में शामिल किया गया।
[ स्रोत : सरकारी मान्यता प्राप्त पुस्तके व राजस्थान पाठ्यपुस्तक मण्डल, उदयपुर ]
प्रस्तुती व संपादन : अणदाराम बिश्नोई ' विद्यार्थी पत्रकारिता '
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